फूलों की शक्ल और उनकी रंगो-बू से सराबोर शायरी से भी अगर आँच आ रही है तो यह मान लेना चाहिए कि फैज़ वहाँ पूरी तरह मौजूद हैं। फैज़ की शायरी की खास पहचान ही है—रोमानी तेवर में भी खालिस इन्किलाबी बात। कारण, इनसान और इनसानियत के हक में उन्होंने एक मुसलसल लड़ाई लड़ी है और उसे दिल की गहराइयों में डूबकर, यहाँ तक कि 'खूने-दिल में उँगलियाँ डुबोकर', कागज़ पर उतारा है। इसीलिए उनकी नज़्में तरक्की पसन्द उर्दू शायरी की बेहतरीन नज़्में हैं और नज़्म की सारी खासियतें और भी निखर-सँवर कर उनकी गज़लों में ढल गई हैं। जाहिरा तौर पर इस पुस्तक में $फैज़ की ऐसी ही चुनिन्दा नज़्मों और गज़लों को सँजोया गया है। आप पढ़ेंगे तो इनमें आपको दुनिया के हर गमशुदा, मगर संघर्षशील आदमी की ऐसी आवाज़ सुनाई देगी जो कैदखानों की सलाखों से भी छन जाती है और फाँसी के फन्दों से भी गूँज उठती है।